नई दिल्ली। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का निधन गुरुवार को 92 वर्ष की आयु में हो गया। देश ने एक महान अर्थशास्त्री, दूरदर्शी नेता और विकास के मजबूत स्तंभ को खो दिया है। उन्होंने अपने लंबे सार्वजनिक सेवा काल में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया, जिनमें भारत के वित्त मंत्री और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर के रूप में उनकी भूमिका भी शामिल है।
आरबीआई गवर्नर के रूप में उनकी भूमिका
डॉ. मनमोहन सिंह ने 16 सितंबर 1982 से 14 जनवरी 1985 तक भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर का दायित्व संभाला। इस अवधि में उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिरता प्रदान करने और आर्थिक नीतियों को सशक्त बनाने हेतु महत्वपूर्ण प्रयास किए। उनके कार्यकाल के दौरान भारतीय मुद्रा पर उनके हस्ताक्षर अंकित किए गए थे, जो उन्हें एक विशिष्ट पहचान प्रदान करते हैं।
उनके कार्यकाल के दौरान, भारत कई आर्थिक चुनौतियो का सामना कर रहा था डॉ. सिंह ने इन चुनौतियो से निपटने के लिए एक effective strategy निभाने मे कामयाब हुए, इसके कारण आरबीआई कामकामा संक्षिप्तीकरण का काम करने मे सक्षम है।उन्होंने, मौद्रिक नीति मे सुधार परियोजना द्वारा, वित्तीय स्थिरता बनाए रखने की कार्यप्रदर्शन मे परियोजना द्वारा, और बैंको क्षेत्र मे पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए परियोजना द्वारा कई और महत्वपूर्ण प्रस्ताव प्रस्तुत किया.
उनके कार्यकाल मे जारी किए गए करेंसी नोटो पर उनके हस्ताक्षर अंकित किए गए, जो आज भी उनकी विरासत का प्रतीक है गवर्नर के रूप मे उनके निर्णय भारतीय अर्थव्यवस्था के दीर्घकालिक विकास की दिशा मे मील का पत्थर साबित हुए। डॉ. अपने कार्यकाल के अभिन्न अंग चित्रो मे मनमोहन सिंह के इस कार्यकाल न केवल उनके आर्थिक दृष्टिकोण को सुरक्षित करता है, बाक़ तरह उसके नीतिगत क्षमता और दूरदर्शिता मे उसकी सुलभता को भी लाता है.
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नोटों पर हस्ताक्षर से जुड़ी रोचक जानकारी
डॉ. मनमोहन सिंह भारतीय इतिहास के एक अनोखे सितारे हैं। उनके हस्ताक्षर दो अलग-अलग भूमिकाओं में हमारे करेंसी नोटों पर चमकते हैं। 1982 से 1985 के बीच, जब वह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर थे, उनके हस्ताक्षर नोटों पर अंकित हुए। उस समय, यह तो एक परंपरा थी, जैसे एक अनिवार्य रीति। क्या आप सोच सकते हैं, कैसे एक हस्ताक्षर में इतना महत्व समाया है?
2005 में, जब वे भारत के प्रधानमंत्री बने, तब 10 रुपये के खास नोट पर उनके हस्ताक्षर चमक उठे। यह एक अनोखी और ऐतिहासिक घटना थी! आमतौर पर, नोटों पर प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के हस्ताक्षर नहीं होते। इस कदम ने डॉ. सिंह की आर्थिक समझ और नेतृत्व की काबिलियत को एक नई पहचान दी। क्या यह उनके लिए एक सम्मान नहीं था?
यह सच भारतीय मुद्रा और राजनीति के इतिहास में एक विशेष जगह रखता है। क्या डॉ. मनमोहन सिंह की बहुआयामी भूमिका और उपलब्धियों को भुलाया जा सकता है? बिल्कुल नहीं!