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रतन टाटा के करीबी सहयोगी शांतनू नायडू बने टाटा मोटर्स के जनरल मैनेजर,

रतन टाटा के करीबी सहयोगी शांतनू नायडू बने टाटा मोटर्स के जनरल मैनेजर,

रतन टाटा के करीबी सहयोगी शांतनू नायडू बने टाटा मोटर्स के जनरल मैनेजर,

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टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन के साथ अनूठे रिश्ते को किताब ‘आई केम अपॉन अ लाइटहाउस’ में किया था पेश, वसीयत में भी मिला था विशेष स्थान

मुंबई, १० अक्टूबर २०२४: टाटा मोटर्स में नई जिम्मेदारी संभालने के साथ ही शांतनू नायडू (३२) एक बार फिर सुर्खियों में हैं। रतन टाटा के पूर्व सहयोगी और करीबी दोस्त नायडू को कंपनी का जनरल मैनेजर व स्ट्रैटेजिक इनिशिएटिव्स हेड नियुक्त किया गया है। लिंक्डइन पर इस उपलब्धि को साझा करते हुए उन्होंने टाटा मोटर्स के साथ अपने बचपन के जुड़ाव को याद किया, जहाँ उनके पिता भी काम करते थे।

रतन टाटा के साथ ‘पारिवारिक रिश्ता’:
नायडू और स्वर्गीय रतन टाटा का रिश्ता पेशेवर सीमाओं से परे था। ९ अक्टूबर २०२४ को टाटा के निधन के बाद शांतनू ने भावुक श्रद्धांजलि में लिखा, “यह दोस्ती अब मेरे दिल में एक सूनापन छोड़ गई है, जिसे भरने में शायद जीवन भर लग जाए। प्यार की कीमत दुख ही तो है। अलविदा, मेरे प्रिय प्रकाशस्तंभ।” टाटा ने न केवल अपनी वसीयत में नायडू का नाम शामिल किया था, बल्कि उनके एजुकेशन लोन माफ़ किए और सीनियर सिटीजन्स के लिए कंपेनियनशिप स्टार्टअप ‘गुडफेलोज़’ में अपनी हिस्सेदारी भी त्याग दी थी।

कैरियर की शुरुआत और ‘कुत्तों वाला प्रोजेक्ट’:
सावित्रीबाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग और कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से एमबीए करने वाले नायडू ने २०१८ में टाटा ग्रुप में असिस्टेंट के रूप में कदम रखा। लेकिन टाटा का ध्यान वे २०१४ में ही अपने एक अभिनव प्रोजेक्ट से खींच चुके थे, जिसमें सड़क दुर्घटनाओं से आवारा कुत्तों को बचाने के लिए रिफ्लेक्टिव कॉलर बनाए गए थे। जानवरों से गहरा लगाव रखने वाले टाटा को यह आइडिया इतना पसंद आया कि दोनों के बीच मित्रता की नींव पड़ गई।

एक किताब और टाटा की विनम्रता:*
२०२२ में प्रकाशित अपनी किताब ‘आई केम अपॉन अ लाइटहाउस’ में नायडू ने टाटा के साथ बिताए पलों को संजोया है। उन्होंने टाटा के व्यवसायिक दूरदर्शिता से ज्यादा उनके मानवीय पहलुओं पर प्रकाश डाला। जब शांतनू ने यह किताब लिखने की इच्छा जताई, तो टाटा ने विनम्रता से कहा था, “एक किताब में तो जीवन समा नहीं सकता।”

वृद्धजनों के लिए ‘गुडफेलोज़’:
२०२१ में शुरू किए गए इस स्टार्टअप के जरिए नायडू ने बुजुर्गों को युवा साथी उपलब्ध कराने का अनोखा प्रयास किया। टाटा ने न केवल इसमें निवेश किया, बल्कि अंतिम समय तक उनका साथ दिया। उनकी वसीयत में शांतनू के प्रति स्नेह इस रिश्ते की गहराई को दर्शाता है।

अंतिम विदाई और विरासत:
नायडू के लिए रतन टाटा न केवल एक मेंटर, बल्कि जीवन का मार्गदर्शक थे। उनकी नई भूमिका टाटा समूह के साथ इस विशेष बंधन की एक और मिसाल है, जहाँ मानवीय मूल्य और नवाचार हमेशा से प्राथमिक रहे हैं।

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