शिवाजीनगर में नवरात्रि की धूम, भक्ति और उल्लास के बीच हुई मां कूष्मांडा की आराधना
शिवाजीनगर, समस्तीपुर: शिवाजीनगर प्रखंड में शारदीय नवरात्रि का पर्व पूरे श्रद्धा, भक्ति और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। नौ दिवसीय अनुष्ठान के चौथे दिन, गुरुवार को, भक्तों ने मां दुर्गा के चतुर्थ स्वरूप, देवी कूष्मांडा की विधिवत पूजा-अर्चना की। सुबह से ही प्रखंड के विभिन्न दुर्गा मंदिरों में श्रद्धालुओं की लंबी कतारें लगने लगीं और पूरा वातावरण माता के जयकारों से गूंज उठा।
शाम के समय मंदिरों में विशेष आरती, दीप प्रज्वलन और भजन-कीर्तन का आयोजन किया गया, जिससे माहौल पूरी तरह भक्तिमय हो गया। भक्तों ने सामूहिक रूप से दुर्गा सप्तशती का पाठ कर आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार किया।
मां कूष्मांडा का महत्व और स्वरूप
स्थानीय पंडित श्री शशि झा ने माता कूष्मांडा की महिमा पर प्रकाश डालते हुए बताया कि मां कूष्मांडा को सृष्टि की आदिस्वरूपा और अधिष्ठात्री माना जाता है। मान्यता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, तब देवी ने अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड की रचना की थी। उन्होंने बताया, “माता कूष्मांडा की कांति और प्रभा सूर्य के समान तेजस्वी है। वह सूर्यमंडल के भीतर निवास करती हैं, और उनकी ऊर्जा से ही दसों दिशाएं प्रकाशित होती हैं।” माता सिंह पर सवार रहती हैं और उनकी आठ भुजाएं हैं। वह भक्तों को रोग, शोक, भय और शत्रु बाधा से मुक्त कर जीवन में सुख-समृद्धि, यश और बल प्रदान करती हैं।
विशेष पूजा और प्रिय भोग
नवरात्रि के चौथे दिन माता को प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा-अर्चना की गई। पंडितों के अनुसार, मां कूष्मांडा को लाल उड़हुल के फूल, इत्र और मालपुए का नैवेद्य अत्यंत प्रिय है। भक्तों ने सुबह गंगाजल से पूजा स्थल को पवित्र कर, लाल चंदन लगे पुष्पों के साथ माता की आराधना की। ऐसी मान्यता है कि माता को इत्र अर्पित करने से जीवन में संतोष और समृद्धि का आगमन होता है, जबकि मालपुए का भोग लगाने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। पूजा के दौरान दुर्गा सप्तशती और दुर्गा सप्तश्लोकी का पाठ किया गया, जिससे ग्रह दोषों का शमन होता है।
मंदिरों में उमड़ी आस्था की भीड़

प्रखंड मुख्यालय स्थित दक्षिण वारी महार एवं पुवारी महार के पूजा पंडालों सहित मनोकामना मंदिर बेला, बंधार चौक, बाघोपुर, दुर्गा मंदिर रामभद्रपुर, हबका, लक्ष्मीनिया, बथनाहा, दसौत, जाखर धरमपुर, बल्लीपुर, करियन और रहटोली समेत अन्य गांवों के दुर्गा मंदिरों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है। शाम ढलते ही महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में सज-धजकर दीपदान के लिए मंदिरों में एकत्रित हुईं। ‘जगदम्बा घर में दियरा बार अइली हे…’ जैसे पारंपरिक भक्ति गीतों से पूरा क्षेत्र गुंजायमान हो रहा है।
पूजा के अंत में कपूर और गाय के घी की बाती से भव्य आरती की गई और भक्तों ने माता से अपने परिवार, समाज और राष्ट्र की सुख-शांति एवं समृद्धि के लिए प्रार्थना की। पूजा समितियों द्वारा मंदिरों में सुरक्षा, स्वच्छता और प्रकाश की उत्तम व्यवस्था की गई है, जिससे यह आध्यात्मिक पर्व सामाजिक समरसता का भी प्रतीक बन गया है।
