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शिवाजीनगर: करोड़ों की लागत से बना स्टेट बोरिंग बना ‘शोभा की वस्तु’, निजी पंपसेट से सिंचाई को मजबूर किसान

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शिवाजीनगर (समस्तीपुर) :- प्रखंड क्षेत्र में किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के सरकारी दावे खोखले साबित हो रहे हैं। करोड़ों की लागत से वर्षों पहले स्थापित किए गए स्टेट बोरिंग आज विभागीय उदासीनता और रखरखाव के अभाव में महज शोभा की वस्तु बनकर रह गए हैं। इसका खामियाजा डुमरा मोहन पंचायत समेत दर्जनों गांवों के किसान भुगत रहे हैं, जो अपनी सूखती फसलों को बचाने के लिए महंगे निजी पंपसेटों पर निर्भर रहने को विवश हैं।

मामला डुमरा मोहन पंचायत के डुमरा टोले शिवराम का है, जहाँ वर्षों पूर्व लघु सिंचाई विभाग द्वारा एक स्टेट बोरिंग का निर्माण कराया गया था। विडंबना यह है कि यह बोरिंग नए प्रखंड सह अंचल कार्यालय के समीप होने के बावजूद आज तक चालू नहीं हो सका। बोरिंग में लगी लाखों की मशीनें जंग खाकर कबाड़ में तब्दील हो रही हैं और इसका भवन जर्जर अवस्था में पहुंच चुका है।

स्थानीय किसानों ने कई बार इस बोरिंग को चालू कराने के लिए गुहार लगाई, लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह अनसुनी कर दी गई। यह बोरिंग आज प्रशासनिक असंवेदनशीलता और सरकारी योजनाओं के जमीनी क्रियान्वयन में विफलता का प्रतीक बन चुका है।

दर्जनों गांवों में एक जैसी स्थिति

यह समस्या केवल डुमरा मोहन तक ही सीमित नहीं है। परवाना, बंन्दा, दसौत, परसा, रानीपरती, बंधार, बल्लीपुर, परशुराम और देवनपुर जैसे कई गांवों में भी सरकारी नलकूपों की स्थिति जस की तस बनी हुई है। अधिकांश बोरिंग वर्षों से बंद पड़े हैं, जिससे किसानों को सिंचाई के लिए पूरी तरह से निजी संसाधनों पर निर्भर रहना पड़ रहा है।

किसानों में बढ़ता आक्रोश, आंदोलन की चेतावनी

सरकारी बोरिंगों की इस बदहाली को लेकर किसानों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। उनका कहना है कि सरकार केवल कागजों पर योजनाएं चला रही है, जबकि धरातल पर स्थिति कुछ और ही है। धान की फसल पानी के अभाव में सूख रही है और वे महंगे दामों पर डीजल खरीदकर या किराए पर पंपसेट लेकर सिंचाई करने को मजबूर हैं। किसानों ने स्पष्ट कहा, “अब हम सरकारी बोरिंग की ओर देखना भी पसंद नहीं करते। यह सिर्फ छलावा है।”

शिवाजीनगर: करोड़ों की लागत से बना स्टेट बोरिंग बना 'शोभा की वस्तु', निजी पंपसेट से सिंचाई को मजबूर किसान

किसानों ने चेतावनी दी है कि यदि इस समस्या का शीघ्र समाधान नहीं किया गया, तो वे इस मामले को लेकर विभागीय मंत्री और मुख्यमंत्री को पत्र लिखेंगे। उन्होंने बड़े स्तर पर आंदोलन करने की भी बात कही है।

एक तरफ सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य की बात करती है, वहीं दूसरी ओर सिंचाई जैसी मूलभूत सुविधा का अभाव किसानों की कमर तोड़ रहा है। अब देखना यह है कि प्रशासन और संबंधित विभाग कब इस गंभीर समस्या पर संज्ञान लेता है और इन बंद पड़े “सफेद हाथियों” को पुनर्जीवित कर किसानों को राहत पहुंचाता है।

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