आस्था का संगम: मां कात्यायनी की भव्य पूजा और बेल निमंत्रण जुलूस से गुंजायमान हुआ शिवाजीनगर
शिवाजीनगर, (संवाददाता):शारदीय नवरात्रि के पावन अवसर पर प्रखंड क्षेत्र भक्ति और उल्लास के सागर में डूबा हुआ है। नवरात्रि के छठे दिन, मां दुर्गा के छठे स्वरूप देवी कात्यायनी की पूजा-अर्चना प्रखंड के विभिन्न मंदिरों और पूजा पंडालों में अपार श्रद्धा और धूमधाम से संपन्न हुई। इस विशेष अवसर पर “बेल निमंत्रण” की प्राचीन परंपरा का निर्वहन करते हुए भक्तों ने ढोल-नगाड़ों और मां के जयकारों के साथ भव्य जुलूस निकाला। इस धार्मिक आयोजन से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया है।
प्रखंड के मनोकामना मंदिर बेला, लक्ष्मीनियां, जाखर धरमपुर, दसौत, बंदा, जानकीनगर, रन्ना, छतौनी, और बंधार चौक दुर्गा मंदिर सहित दर्जनों गांवों में दुर्गा पूजा की भव्यता अपने चरम पर है। पूजा समितियों ने मनमोहक पंडालों का निर्माण किया है, जिसमें स्थापित मां दुर्गा की अलौकिक प्रतिमाएं श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। इन स्थलों पर लगे मेले ग्रामीणों के उत्साह को दोगुना कर रहे हैं।
मनोकामना मंदिर बेला: आस्था और इतिहास का प्रतीक

इस क्षेत्र में, मनोकामना मंदिर बेला एक प्रमुख धार्मिक और आस्था के केंद्र के रूप में उभरा है। यहां की पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि काशी से पधारे विद्वान पंडित सरयुग दास के कुशल नेतृत्व में 205 कलश वर्तियों की स्थापना कर संपूर्ण वैदिक विधि-विधान से पूजा संपन्न कराई जा रही है।
रविवार को षष्ठी तिथि के अवसर पर, मां कात्यायनी के पूजन के उपरांत “बेल निमंत्रण” की परंपरा निभाई गई। पंडित सरयुग दास ने विधि-विधान से बेल (बिल्व) वृक्ष का पूजन किया, जिसके बाद गाजे-बाजे और जयकारों के साथ एक भव्य जुलूस निकाला गया, जिसमें सैकड़ों की संख्या में ग्रामीणों ने भाग लिया। पंडित जी ने बताया, “सप्तमी तिथि को मंदिर के पट खुलने से पहले, इसी बेल को डोली पर श्रद्धापूर्वक लाकर मां कालरात्रि की विशेष पूजा की जाएगी। यह इस क्षेत्र की वर्षों पुरानी परंपरा है और इसका गहरा आध्यात्मिक महत्व है।”
स्वप्न से संकल्प तक की यात्रा
पूजा समिति के एक वरिष्ठ सदस्य, श्री गंगा प्रसाद मंडल ने मंदिर की स्थापना के पीछे की चमत्कारी कहानी साझा की। उन्होंने बताया, “लगभग 15 वर्ष पूर्व मुझे स्वप्न में मां ने यह संकेत दिया था कि बेला चौक के इस स्थल पर विधिवत पूजा-अर्चना आरंभ की जाए। इससे न केवल श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी होंगी, बल्कि पूरे क्षेत्र में खुशहाली और समृद्धि आएगी।”
इसी प्रेरणा से वर्ष 2010 में स्थानीय भक्तों ने बांस-फूस (कटफस) का एक छोटा सा मंडप बनाकर पूजा की शुरुआत की थी। आज, ग्रामीणों और पूजा समिति के निरंतर सहयोग और अथक प्रयासों से यहां एक भव्य मंदिर का निर्माण हो चुका है। मंदिर परिसर में एक विशाल हॉल भी बनाया गया है, जो कलश वर्तियों और दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए पूजा-अर्चना और विश्राम की सुविधा प्रदान करता है।
भक्ति और सामाजिक समरसता का उत्सव
प्रत्येक दिन मंदिर परिसर में कलश वर्तियों द्वारा सामूहिक पूजा-अर्चना की जाती है, जिसके बाद संध्या वंदन और भव्य आरती का आयोजन होता है। इस दौरान भक्ति संगीत, कीर्तन और देवी गीतों से पूरा वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से सराबोर हो जाता है।
इस विशाल आयोजन को सफल बनाने में पूजा समिति के रमाकांत मंडल, बाबू प्रसाद सिंह, रामकरण मंडल, विपिन बिहारी प्रसाद, शंकर कुमार (शिक्षक), दिनेश कुमार सिंह, राम शगुन मंडल (सेठ जी), और चंद्र नारायण मंडल सहित सैकड़ों ग्रामीण अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। इन सभी का सामूहिक प्रयास इस नवरात्रि महोत्सव को न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक समरसता का एक जीवंत प्रतीक बनाता है। श्रद्धालुओं की भारी भीड़, महिलाओं की व्यापक भागीदारी और युवाओं का उत्साह यह दर्शाता है कि यह आयोजन हर साल नई ऊंचाइयों को छू रहा है।
