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“दिल्ली का पानी संकट: क्या 20 मिलियन लोगों की रोज़ाना की लड़ाई सिर्फ एक बूँद के लिए है? हर दिन, हर घड़ी, पानी की तलाश में संघर्षरत!”

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दिल्ली, 20 मिलियन से ज्यादा लोगों का शहर, हर सुबह पानी के संकट की कड़वी सच्चाई के साथ उठता है। हाल ही में जल बोर्ड ने पानी की कटौती की खबर दी। संगम विहार से शाहदरा तक, साफ पानी के लिए जंग चल रही है। यह एक दुखद तस्वीर है, जहां असमानता और उपेक्षा का साया है। क्या यह सही है कि कुछ लोग प्यासे रह जाएँ?

क्या दिलचस्प है!

23 में से 21 स्थानों पर पानी की किल्लत है, और वहां आम आदमी पार्टी (AAP) के विधायक हैं। शहर की पानी की समस्या तो जैसे एक बवंडर बन गई है। बुनियादी ढांचे की कमी, बढ़ता प्रदूषण और ‘टैंकर माफिया’ का जाल इसे और जटिल बना रहा है। गर्मियों में तो पानी के टैंकर ₹2000 तक पहुंच जाते हैं। गरीबों पर तो जैसे आसमान टूट पड़ता है।

दिल्ली के पानी में खतरनाक दूषित पदार्थों की भरमार है। टर्बिडिटी और टीडीएस के स्तर आसमान छू रहे हैं, जबकि क्लोरीन की कमी ने इसे पीने के लिए खतरनाक बना दिया है। इससे स्वास्थ्य पर कहर बरप रहा है। खासकर निम्न-आय वर्ग में टाइफाइड और हैजा जैसी बीमारियाँ तेजी से फैल रही हैं। क्या हमें सच में इसके खिलाफ कुछ करना नहीं चाहिए?

दिल्ली सरकार ने राजेंद्र नगर में 24×7 स्वच्छ पानी की योजना को धूमधाम से शुरू किया। लेकिन क्या ये वादे सच में रंग लाए? परीक्षणों ने तो बुरा हाल बता दिया। ये प्रोजेक्ट गुणवत्ता के मानक पर खरा नहीं उतर सका। क्या यही है दिल्ली जल बोर्ड की विफलताओं का चेहरा?

संकट सिर्फ पानी की गुणवत्ता का नहीं, बल्कि शासन की भी है। स्वच्छ पानी का वादा हवा में उड़ गया! यमुना का प्रदूषण और दिल्ली जल बोर्ड की लापरवाही पर आम आदमी पार्टी को ताना मिल रहा है। क्या हम इस गंदगी के बीच जीने के लिए मजबूर हैं?
दिल्ली एक मोड़ पर है। उसका भविष्य जल प्रबंधन की गहरी सुधारों पर टिक गया है। क्या जिम्मेदार संस्थाएं इस चुनौती को स्वीकार करने की हिम्मत जुटा पाएंगी

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